अब कि
जो सूखने लगा है
वो पीपल का पेड़,
तमाम रूहें
जो उसी पे रहती थी,
वे न जाने कहाँ गयी होंगी
और अब जो
रात भर टंगे रहते हैं
कंदील पे सूरज,
अब जुगनू नहीं दीखते,
भटकती रूहों को
अब रास्ता कौन दिखाता है |
जो सूखने लगा है
वो पीपल का पेड़,
तमाम रूहें
जो उसी पे रहती थी,
वे न जाने कहाँ गयी होंगी
और अब जो
रात भर टंगे रहते हैं
कंदील पे सूरज,
अब जुगनू नहीं दीखते,
भटकती रूहों को
अब रास्ता कौन दिखाता है |