मंगलवार, 24 मार्च 2015

दिल्ली विश्वविद्यालय में होली का एक सीन



होली - दिल्ली शहर - दिल्ली विश्वविद्यालय - उत्तरी परिसर | हफ्ते भर से जगह-जगह होस्टलों में नोटिस चस्पा मिल रहा है | होली में हुड़दंगई न करें, गर्ल्स हॉस्टल के आस पास होली न खेलें | सुबह से पुलिस आज जैसे गश्त कर रही है और जगह जगह बैठकर कैंटीन से फ्री वाला चाय पी रही है, लग रहा है कमबख्त होली का त्यौहार न हुआ, कोई दंगा हो गया है | सुबह से माज़रा समझ नहीं आ रहा था, और ये वाले नोटिस हमें न जाने क्यूँ कलतक मज़ाक जैसे लगता था | लेकिन आज भाँग के नशे में इस त्यौहार और दिल्ली विश्वविद्यालय की भंगिमा को भंग करने को कृतसंकल्प कुछ बुद्धिजीवी छात्रों को होली के पावन पर्व के अवसर पर जश्न करते देख सब कुछ धीरे धीरे समझ आ रहा है | हमारे गाँव में होली के हफ़्तों पहले से रात रात भर ढोलक पीट कर "फगुआ" गाते हुए हमने सुना और देखा है, होली के दिन जबरदस्त बदमाशी और बुरा न मानो होली है चिल्लाते हुए , जान-पहचान वालों से लेकर अनजानों तक को पानी का पाइप लेकर दौड़ाने वाला काम हमने भी कर रखा है | अखाड़े में एक दुसरे को गिराकर कीचड़ में सान देना भी इस त्यौहार का एक हिस्सा हुआ करता था | इन सबको आप उद्दंडता जैसे तमाम विशेषणों से नवाज़ सकते हैं, घर वाले भी बहुत डांटते थे, मार भी पड़ती थी कभी कभी तो हम सब लोग भाग जाते थे |
इस उद्दंडता और आज की होली में हो रहे उद्दंडता में एक मौलिक फर्क है | हम बदमाश थे, बदमाशी करते थे, कुछ लोगों को बुरा भी लग जाता था लेकिन, इन सबके बावजूद किसी को "डर" नहीं लगता था | इसमें "फूहड़ता" और "भद्दापन" नहीं था | आज "होली है" चिल्लाते हुए २०-२५ लड़कों के झुण्ड के आगे जा रही ५-६ लड़कियों को भागते हुए देख रहा था, जी हाँ, एक बार और पढ़ लीजिये, वे भाग रही थीं और वो डरी हुई थी, ये साफ़ दिख रहा था | आज के इस शरारत में एक भद्दापना और एक फूहड़ता है, आज 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली ...' गाने के अंदाज़ की वजह से अश्लील लगने लग जाता है |
इस अंतर को देखना, इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है | त्यौहार की गरिमा को आज का उत्सवधर्मी युवावर्ग भूल ही नहीं रहा वरन उसे दूषित करने लग गया है | और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मैं कोई इस टॉपिक पर रिसर्च नहीं कर रहा हूँ, लेकिन चीजें सामने घट रहीं हैं तो दिखती है | आपको नहीं दिख रहा है तो मतलब है कि आप और आपके आस-पास के लोग बड़े सभ्य हैं वैसे सभ्य हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र भी थे और महारानी गांधारी भी (हम कोइ संकेत नहीं कर रहे ये तो बस वैसे ही लिख दिए, इस लाइन को छोड़ सकते हैं आप, हमको आदत है context से बहार की बात करने का) |
ये सब कुछ देखकर मन में एक और ख्याल रहा है, इस प्रकार की उत्सवधर्मिता तथाकथित 'भारतीय संस्कृति और सभ्यता' (जिसके जीवित होने का भ्रम रहने से बहुतों का पेट भर रहा है और बहुत का पेट कट भी रहा है) को कितना बल देती है ? अरे घबराइये नहीं, ये वाली बात इसलिए कह रहे हैं क्योकि ठीक से महिना भर भी नहीं बीता, शायद 'इसी वाली संस्कृति' को बचाने के लिए कुछ लोग डंडा लेकर लड़के-लड़कियों को पार्कों में दौड़कर मार रहे थे, क्योकि वे 'एक दुसरे की मर्ज़ी से' एक दुसरे का हाथ पकड़ के घूम रहे थे और इससे "इस वाली संस्कृति" की दीवार टूट कर उनलोगों के सिर पर गिर रही थी | अगर ये सब कुछ इसी वाली संस्कृति में था जो लोग होली मना रहे हैं तो बिना मर्ज़ी के किसी के ऊपर चिल्लाने, किसी लड़की को छेड़ने और किसी को जबरदस्ती रंग डालने, सामने से गुजर रही किसी लड़की पर कमेंट् करने से चलिए वैलेंटाइन पर जितनी क्षति हुई है उसकी भरपाई हो जायेगी | भगवान् करे ऐसा ही हो | और हाँ, संत जी को तो हम भूल ही रहे थे, ज्यादा क्या कहें लेकिन याद तो होगा ही आपको कि एक संत जी और उनका आश्रम १४ फ़रवरी को होने वाले से प्रलय से इस संस्कृति को बचाने के लिए कितने संघर्षशील थे (और माँ-बाप की पूजा वगैरह करवा कर किसी तरह बचाया था इसे) | आज होली मनाने वाले कार्यक्रम से चूँकि "इस वाली संस्कृति" में चार चाँद लग रहे हैं, इन "उत्सवधर्मी युवाओं" के "उत्साहवर्धन" हेतु वे कुछ "आशीर्वचन" कहते तो अच्छा लगता | ऐसे ही, इसका कोई मतलब निकलने की जरुरत नहीं हैं, बस हमें अच्छा लगता इसलिए कह रहे हैं |
और हाँ, अगर १४ फ़रवरी को जिस संस्कृति को बचाया जा रहा था वो वाली अगर कोई दूसरी रही हो तो माफ़ कर दीजियेगा हमको म्यूजियम में रखी सारी चीजें एक ही जैसी दिखती हैं तो हो सकता है कि हम थोड़े कंफ्यूज हो गए हों, माने हमारी नज़र थोड़ी कमज़ोर है और इतिहास की जानकारी भी कम | और, वैसे भी हम तो कहते हैं, म्यूजियम की चीज़ कभी कभी देखने के लिए होती हैं, समझने और जानने पहचानने को दुनिया में कम चीजें हैं, हाँ ?
खैर, और भी बहुत कुछ हैं कहने को लेकिन वो सब आप वैसे ही समझ गए होंगे, और नहीं समझ पाए हैं तो आप नहीं समझ पायेंगे | अबतक तो आपको गुस्सा भी आ रहा होगा कि दो शब्द 'हैप्पी होली' लिखकर छुट्टी ले लेना था, ये नालायक पता नहीं क्या गाये जा रहा है तबसे | तो आपके लिए हैप्पी होली भी |
और दिल्ली में अगर किसी के घर गुझिया बना हो तो अच्छी बात है, हमें बहुत पसंद है, मतलब बुलाने को नहीं कह रहे हैं, बस बतला रहे हैं हमें अच्छा लगता है और बुलाएँगे तो खाने भी आ जायेंगे |

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