शनिवार, 2 अप्रैल 2016

टाइम-पास

अमाँ टाइटल देखके नाक भौंह ना सिकोड़ो, मुद्दा सीरीयस है। टाइम-पास बीते दिनों की एक अत्यंत गूढ़ विधा है जो आजकल ख़त्म होने के कगार पर है। अब देखिए न, रंगमंच से लेकर शास्त्रीय गायन-वादन इत्यादि हर विधा को 'रीवाइव' करने का प्रयास जारी है। और ना जाने कितने लोग मृत्यु के कगार पर खड़ी विधाओं को जीवित करने के नाम पर प्राप्त अनुदानों इत्यादि के आधार पर जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन टाइम-पास करने की विधा पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा।
प्रायः अपने पूरे टाइम का अधिकांश पास कर चुके लोगों के लिए टाइम पास करने के तरीक़े ढूँढ़ना बहुत आवश्यक हो जाता है। और ऐसे लोग प्रायः पूजा पाठ जैसे अति-प्राचीन तरीक़ों से लेकर बिना वजह पार्क में हँसना, कुत्ते बिल्ली घुमाना इत्यादि नाना प्रकार के तरीक़ों से टाइम पास करते हैं।
दुनिया के प्रायः हरेक कोने में इस विधा का विशेष पोषक वर्ग होता है जो प्रायः सभी विषयों पर प्रलाप, एकालाप इत्यादि से लगते हुए अत्यंत अत्युक्तिपूर्ण, अबोधगम्य और निरर्थक प्रकार के वार्तालाप करते हुए टाइम पास करते हैं। ऐसे लोगों को विचारक, चिंतक या बुद्धिजीवी भी कहा जाता है। और टाइम पास के इस विशेष तरीक़े को वैचारिकी के नाम से जाना जाता है।
टाइम पास करना महज कोई एक विधा नहीं बल्कि समस्त विधाओं और कलाओं की जननी है। नाटक, काव्य, संगीत इत्यादि का जन्म टाइम पास के लिए हुआ है। एक वर्ग टाइम पास करने के लिए ऐसे लोगों को धन देता है को उसके टाइम पास का संसाधन बना सकते हैं। इस प्रकार दोनो का टाइम पास होता रहता है। दुनिया के समस्त वाद (-ism) इसी टाइम पास की उपज हैं। प्योर टाइम पास में उपजी चीज़ें परम शाश्वत होती हैं, और बहुत टाइम पास हो जाने के बाद भी जस की तस रहती हैं। टाइम पास वाली कलाएँ टाइम वैसे ही पास कर जाती हैं जैसे पूर्ण से पूर्ण निकलकर पूर्ण बच जाता है।
किंतु,समस्या यह है कि टाइम पास करने के लिए पास में टाइम होना ज़रुरी है। आजकल की पीढ़ी यहीं गच्चा खा जाती है। टाइम हो तब तो पास करें। अब तो बस टाइम के साथ लोग पास हो रहे हैं और जो पास नहीं हो जा रहे वे सब फ़ेल हो जा रहे हैं। टाइम पास की विधा इसलिए 'extinct' होने के कगार पर खड़ी है। वैसे टाइम तो है एक अथाह सागर, बहे ही जा रहा। कुछ लोग इसको मैनेज करने के लिए टाइम मैनज्मेंट का कोर्स तक करने लग जाते हैं। अब बताइए भला, समंदर क्या कोई मैनिज होने की चीज़ है? नहीं ना! फिर टाइम भला कैसे मैनिज हो, ये तो बहेगा ही। लेकिन जनता का सारा टाइम तो टाइम मैनज्मेंट में पास हो गया और टाइम पास का टाइम मैनेज ही नहीं हो पाया।
अब चूँकि टाइम पास करने ला टाइम पास में नहीं है उच्च कोटि की कलात्मक रचनाएँ, गीत-प्रग़ीत, कविता, कहानी इत्यादि जो टाइम पास के क्षणो में उपजती हैं ऐसी रचनाएँ आजकल लुप्तप्राय हो गयी हैं। टाइम की जनता के पास बड़ी कमी है, तीन साल में टाइम कमबख़्त पाँच साल पास हो जाता है, और जनता घण्टाघर के घड़ी जैसे वहीं खड़े बस थोड़ा और गँदला जाती है। टाइम पास के संदर्भ में कल और आज में एक मूलभूत अंतर है। पहले टाइम पास किया जाता था और अब टाइम पास हो जाता है। अब करने में कर्म प्रधान है, पुरुषार्थ का भाव है। हो जाने में निरीहता है, आलस्य भाव है। इसलिए टाइम पास करना जरुरी है। टाइम पास किए बिना जिसका टाइम पास हो गया, वो समझिए टाइम के इग्ज़ाम में पास नहीं हो पाया।
पहले जबकि गोरखपुर से बनारस जाने में कई दिन लगते थे, अब उतने में आदमी अमेरिका जाकर लौट आए। लेकिन टाइम फिर भी नहीं बचा। और तो और कुछ ऐसा भी नहीं है कि टाइम नहीं बच रहा तो कोई बड़ा पहाड़ खोद दिए। और खोद भी दिए तो आख़िर क्या? निकली तो बस वही चुहिया। समस्या यही है कि टाइम आपके पास से कब पास हो गया, आपको पता भी नहीं चला और आप हो गए फ़ेल। टाइम पास आप कर नहीं रहे, बस हो रहा टाइम पास।
इसलिए कर्म करिए माने टाइम पास करिए। अब आप कहेंगे टाइम पास करेंगे तो यह नुक़सान होगा, फलाने होगा, ढिमकाने होगा। यहीं कर गए बुर्बकई ना।हम क्या कहे कि आप कर्म करिए, टाइम पास करिए उससे क्या होगा वो आपका 'हेडेक' थोड़े है। क्या कहे थे भगवान कृष्ण? 'कर्माण्डयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन'। अब भगवान की बात तो मानेंगे न?
महाभारत उठा के देख लीजिए पुरा, हरेक योद्धा एक दिन में युद्ध ख़त्म कर सकता था। लेकिन क्या हुआ लगा दिए १८ दिन। क्यों? हर कोई टाइम पास कर था था। ख़ाली लड़ना होता तो दिन रात लड़ के निपटा ही देते।
लेकिन भाई! कौन सा टाइम आपके बैंक अकाउंट से डेबिट हो रहा है? अनलिमिटेड सप्लाई है करिए दबाके ख़र्च!! टाइम पास मत होने दीजिए बिलकुल भी, टाइम पास करिए इसीमें भलाई है।
मैं तो कहता हूँ बुद्धिजीवियों को टाइम पास करने पर किताब लिखनी चाहिए। इससे वे भी कुछ टाइम पास कर सकेंगे, और पढ़ने वाले भी कर सकेंगे।

मंगलवार, 24 मार्च 2015

दिल्ली विश्वविद्यालय में होली का एक सीन



होली - दिल्ली शहर - दिल्ली विश्वविद्यालय - उत्तरी परिसर | हफ्ते भर से जगह-जगह होस्टलों में नोटिस चस्पा मिल रहा है | होली में हुड़दंगई न करें, गर्ल्स हॉस्टल के आस पास होली न खेलें | सुबह से पुलिस आज जैसे गश्त कर रही है और जगह जगह बैठकर कैंटीन से फ्री वाला चाय पी रही है, लग रहा है कमबख्त होली का त्यौहार न हुआ, कोई दंगा हो गया है | सुबह से माज़रा समझ नहीं आ रहा था, और ये वाले नोटिस हमें न जाने क्यूँ कलतक मज़ाक जैसे लगता था | लेकिन आज भाँग के नशे में इस त्यौहार और दिल्ली विश्वविद्यालय की भंगिमा को भंग करने को कृतसंकल्प कुछ बुद्धिजीवी छात्रों को होली के पावन पर्व के अवसर पर जश्न करते देख सब कुछ धीरे धीरे समझ आ रहा है | हमारे गाँव में होली के हफ़्तों पहले से रात रात भर ढोलक पीट कर "फगुआ" गाते हुए हमने सुना और देखा है, होली के दिन जबरदस्त बदमाशी और बुरा न मानो होली है चिल्लाते हुए , जान-पहचान वालों से लेकर अनजानों तक को पानी का पाइप लेकर दौड़ाने वाला काम हमने भी कर रखा है | अखाड़े में एक दुसरे को गिराकर कीचड़ में सान देना भी इस त्यौहार का एक हिस्सा हुआ करता था | इन सबको आप उद्दंडता जैसे तमाम विशेषणों से नवाज़ सकते हैं, घर वाले भी बहुत डांटते थे, मार भी पड़ती थी कभी कभी तो हम सब लोग भाग जाते थे |
इस उद्दंडता और आज की होली में हो रहे उद्दंडता में एक मौलिक फर्क है | हम बदमाश थे, बदमाशी करते थे, कुछ लोगों को बुरा भी लग जाता था लेकिन, इन सबके बावजूद किसी को "डर" नहीं लगता था | इसमें "फूहड़ता" और "भद्दापन" नहीं था | आज "होली है" चिल्लाते हुए २०-२५ लड़कों के झुण्ड के आगे जा रही ५-६ लड़कियों को भागते हुए देख रहा था, जी हाँ, एक बार और पढ़ लीजिये, वे भाग रही थीं और वो डरी हुई थी, ये साफ़ दिख रहा था | आज के इस शरारत में एक भद्दापना और एक फूहड़ता है, आज 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली ...' गाने के अंदाज़ की वजह से अश्लील लगने लग जाता है |
इस अंतर को देखना, इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है | त्यौहार की गरिमा को आज का उत्सवधर्मी युवावर्ग भूल ही नहीं रहा वरन उसे दूषित करने लग गया है | और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मैं कोई इस टॉपिक पर रिसर्च नहीं कर रहा हूँ, लेकिन चीजें सामने घट रहीं हैं तो दिखती है | आपको नहीं दिख रहा है तो मतलब है कि आप और आपके आस-पास के लोग बड़े सभ्य हैं वैसे सभ्य हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र भी थे और महारानी गांधारी भी (हम कोइ संकेत नहीं कर रहे ये तो बस वैसे ही लिख दिए, इस लाइन को छोड़ सकते हैं आप, हमको आदत है context से बहार की बात करने का) |
ये सब कुछ देखकर मन में एक और ख्याल रहा है, इस प्रकार की उत्सवधर्मिता तथाकथित 'भारतीय संस्कृति और सभ्यता' (जिसके जीवित होने का भ्रम रहने से बहुतों का पेट भर रहा है और बहुत का पेट कट भी रहा है) को कितना बल देती है ? अरे घबराइये नहीं, ये वाली बात इसलिए कह रहे हैं क्योकि ठीक से महिना भर भी नहीं बीता, शायद 'इसी वाली संस्कृति' को बचाने के लिए कुछ लोग डंडा लेकर लड़के-लड़कियों को पार्कों में दौड़कर मार रहे थे, क्योकि वे 'एक दुसरे की मर्ज़ी से' एक दुसरे का हाथ पकड़ के घूम रहे थे और इससे "इस वाली संस्कृति" की दीवार टूट कर उनलोगों के सिर पर गिर रही थी | अगर ये सब कुछ इसी वाली संस्कृति में था जो लोग होली मना रहे हैं तो बिना मर्ज़ी के किसी के ऊपर चिल्लाने, किसी लड़की को छेड़ने और किसी को जबरदस्ती रंग डालने, सामने से गुजर रही किसी लड़की पर कमेंट् करने से चलिए वैलेंटाइन पर जितनी क्षति हुई है उसकी भरपाई हो जायेगी | भगवान् करे ऐसा ही हो | और हाँ, संत जी को तो हम भूल ही रहे थे, ज्यादा क्या कहें लेकिन याद तो होगा ही आपको कि एक संत जी और उनका आश्रम १४ फ़रवरी को होने वाले से प्रलय से इस संस्कृति को बचाने के लिए कितने संघर्षशील थे (और माँ-बाप की पूजा वगैरह करवा कर किसी तरह बचाया था इसे) | आज होली मनाने वाले कार्यक्रम से चूँकि "इस वाली संस्कृति" में चार चाँद लग रहे हैं, इन "उत्सवधर्मी युवाओं" के "उत्साहवर्धन" हेतु वे कुछ "आशीर्वचन" कहते तो अच्छा लगता | ऐसे ही, इसका कोई मतलब निकलने की जरुरत नहीं हैं, बस हमें अच्छा लगता इसलिए कह रहे हैं |
और हाँ, अगर १४ फ़रवरी को जिस संस्कृति को बचाया जा रहा था वो वाली अगर कोई दूसरी रही हो तो माफ़ कर दीजियेगा हमको म्यूजियम में रखी सारी चीजें एक ही जैसी दिखती हैं तो हो सकता है कि हम थोड़े कंफ्यूज हो गए हों, माने हमारी नज़र थोड़ी कमज़ोर है और इतिहास की जानकारी भी कम | और, वैसे भी हम तो कहते हैं, म्यूजियम की चीज़ कभी कभी देखने के लिए होती हैं, समझने और जानने पहचानने को दुनिया में कम चीजें हैं, हाँ ?
खैर, और भी बहुत कुछ हैं कहने को लेकिन वो सब आप वैसे ही समझ गए होंगे, और नहीं समझ पाए हैं तो आप नहीं समझ पायेंगे | अबतक तो आपको गुस्सा भी आ रहा होगा कि दो शब्द 'हैप्पी होली' लिखकर छुट्टी ले लेना था, ये नालायक पता नहीं क्या गाये जा रहा है तबसे | तो आपके लिए हैप्पी होली भी |
और दिल्ली में अगर किसी के घर गुझिया बना हो तो अच्छी बात है, हमें बहुत पसंद है, मतलब बुलाने को नहीं कह रहे हैं, बस बतला रहे हैं हमें अच्छा लगता है और बुलाएँगे तो खाने भी आ जायेंगे |

सोमवार, 21 जुलाई 2014

अब

अब कि
जो सूखने लगा है
वो पीपल का पेड़,
तमाम रूहें
जो उसी पे रहती थी,
वे न जाने कहाँ गयी होंगी

और अब जो
रात भर टंगे रहते हैं
कंदील पे सूरज,
अब जुगनू नहीं दीखते,
भटकती रूहों को
अब रास्ता कौन दिखाता है |

शनिवार, 5 जुलाई 2014

सोचता हूँ यही

आजकल,
सोचता हूँ यही |
तुमसे कह दूँ,
या ना कहूँ ?

हां..! हां,ये सच है,
की डरने लगा हूँ मैं,
तुम्हे पाया नहीं,
बेशक,
मगर,एक हक़ लगता है,
जैसे तुम पर मेरा है |
ये हक़,
खो न दूँ कहीं |
आजकल,
सोचता हूँ यही |


ये गुस्ताखियाँ,
यकीं मानो,
बेइरादा हैं बिलकुल |
मगर अब,
एक ठोस हकीकत भी हैं ये |
हां, ये सच है,
की तुझे चाहने लगा हु मैं |
ना जाने तेरी नज़रों में,
ये कितना गलत है,
और कितना सही |
आजकल,
सोचता हूँ यही |


तमन्ना तो बहुत है,
की जज्बात-ऐ-बयाँ हो,
मगर,
एक डर है अब,
तुम मुझे चाहो या नहीं,
आजकल,
सोचता हूँ यही |

सोमवार, 23 जून 2014

ग़ज़ल

दयार-ए-दिल से तेरी याद को रुखसत तो कर दूँ मैं,
मगर ये सोचता हूँ वो , किधर जाएगी फिर तन्हा
थे जब तक अजनबी तुमसे,नहीं गम थे कोई हमको
मेरी दुनिया तुम्हारे बिन, संवर जाएगी फिर तन्हा
सभी साहिल पे सर पटके बहुत भटकी हैं ये मौजें,
ग़मों के ये समन्दर में ,उतर जाएँगी फिर तन्हा
ग़ज़ल की कैफियत से कट रही है जिंदगी राघव
इन्ही लफ़्ज़ों के संग ये भी बिखर जाएगी फिर तन्हा


रविवार, 22 जून 2014

बड़े खुश नसीब हो कि राह-ए-इश्क में रुसवाइयाँ मिली,
वरना कितने बीमारे-इश्क मरे , किसी को खबर नहीं | |


शनिवार, 7 जून 2014

उसको फैलाना था पूरी दुनिया में ज़हर

उसको फैलाना था पूरी दुनिया में ज़हर,तो उसने
एक मासूम बच्चे के खाने में ज़हर घोल दिया है||


वो ईशा हो या सुकरात या गाँधी,उसे दुनिया ने ,
सूली पे चढ़ाया है, जिसने भी सच बोल दिया है||


अभी तक जो बेचारे हवा के रहमों-करम पर थे,
अब उन परिंदों ने भी अपना पर तोल लिया है||


चले थे बंद कर आँखे जो लोग,रहबर के यकी पर,
कुछ देर से सही,उन सबने आँखें खोल लिया है ||


आफताब का इन्तेजार कैसा, तीरगी जैसी भी हो,
अब जुगनुओं ने जानबुझकर ये जंग मोल लिया है||